अक्सर अच्छे संचालकों को संचालन के लिए बेहतरीन भक्ति शायरी की आवश्यकता रहती है। किसी भक्ति कार्यक्रम (Bhakti karykaram) में कुशलता पूर्वक मंच संचालन के लिए आपके पास शायरी तो होनी ही चाहिए। शायरी भी ऐसी होनी चाहिए जो सुनने वालों पर प्रभाव डालें। सुनने वालों में रुचि जागृत करने वाले मुक्तक और कविताएं आपके कार्यक्रम को चार चांद लगा देंगे। भक्ति कार्यक्रम के लिए कुछ शायरियां आपको दी गई है आप इनमें से बोल सकते हैं।
भक्ति कार्यक्रम शुरुआत शायरी
भक्ति में शक्ति बंधु
शक्ति में संसार है
दुनियां में है जिसकी पूजा
आज उस देव का त्यौहार है।
शुभ दिन का सत्कार करते हैं
पावन मन से ध्यान करते हैं
सबकी ख़ुशी में हो मेरी ख़ुशी
आओ प्रभु का गुणगान करते हैं
क्षमा भाव रखें मन में हमेशा
क्षमा ही जीवन का सार होती है
मिलकर करें भक्ति सत्संग
तो प्रार्थना स्वीकार होती है
मुस्कुराती जिंदगानी चाहिए
शब्द की जागृत कहानी चाहिए
सारी दुनिया अपनी हो जाती है बस
एक उसकी मेहरबानी चाहिए
लगता तो बेखबर सा हूं
लेकिन खबर में हूं
तेरी नजर में हूं
तो मैं सबकी नजर में हूं
नया निज़ाम,नई बंदिशें ,ऐलान नया
हम फ़कत लश्करे-शाही के ही माफिक सोचें
साहिबे वक्त ने ये हुक्म किया है जारी
अपनी नस्लों से कहो, मेरे मुताबिक सोचें
जो पर पीड़ा मन में धारे वो नैन नीर हो जाएगा
जो नैनो की भाषा समझा अनकही, पीर हो जाएगा
जो जीवन के व्यामोह मोह को तजकर दृघ गंगाजल से
तन मन को तीर्थ बना लेगा वह महावीर हो जाएगा
तल्खियाँ दिल में न घोला कीजिए
गाँठ लग जाए तो खोला कीजिये
आप में कोई बुराई हो न हो
फिर भी ख़ुद को नित टटोला कीजिये
बोलने को सच्ची बातें बहुत हैं
मगर मेरे दोस्त तुम सुनते तो नहीं
कहते फिरते हो सच्चाई का साथ दो
फिर सच्चाई पर चलते क्यों नहीं
जात पात भेदभाव पर शायरी
धरती माता पर मिलती है सबको शरण
यहां कुदरत की हवा हर सांस में समाई है
कुदरत कभी किसी से भेद नहीं करती
ऐ मानव तूने ही ये जात पात बनाई है
कौन सी ऊंची जाति है तेरी
दुनियां इससे अनजान होती है
मगर तेरी कर्म करने की रीति कैसी है
कर्म से ही इन्सान की पहचान होती है
जाति धर्म रंग से भेद करने वाले
तुझमें कभी इंसानियत नहीं आएगी
मात्र तिलक,पूजा,उपवास,पाठ करने से
तेरी ज़िंदगी में रूहानियत नहीं आएगी
ईश्वर के बनाएं कंकाल का नाम ना धरो
ऊंच नीच के भेद से किसी को बदनाम ना करो
जात पात अराजकवादी लोगों की वृति है
मात्र जाति से आदमी की पहचान ना करो
इंसानियत इंसान को महान बना देती है
लगन हर मुश्किल को आसान बना देती है
ईश्वर के लिए हृदय में श्रद्धा होनी चाहिए
सच्ची आस्था पत्थर को भगवान बना देती है
अंधेरे में अपनी छाया भी साथ नहीं देती
बुढ़ापे में अपनी काया भी साथ नहीं देती
सारा जीवन दाव पर लगा देते हैं जिसके लिए
अंत में वो माया भी साथ नहीं देती
धन्यवाद शायरी
जो दिया खुदा ने करो कबूल
कभी-कभी कांटों में भी खिल जाते हैं फूल
बस मांगने का ही भाव रखोगे तो दीन बन जाओगे
दूसरों पर निर्भर रहोगे तो पराधीन बन जाओगे
धन्यवाद करो प्रभु का जिसने तुम्हें ये शरीर दिया
हमेशा भाग्य को कोसते रहे तो एक दिन भाग्यहीन बन जाओगे
गुनाह जब करना
तो जरा हिसाब रखना
लौटकर आएगा सब
इतना ख्याल रखना
सत्य से मीठा दुनिया का
कोई फल नहीं
झूठ कितना भी बोलो
उसका कोई कल नहीं
गजब है तू दातार सांवरे
गजब तेरी दातारी रे
हर लेता है पीर भगत की
चाहे विपदा हो कितनी भारी रे
दिन पलटते जा रहे हैं
खबर है ही नहीं के
ये आ रहे हैं
या जा रहे है
अक्सर शुरू में उनकी बुराई होती है
जिनके चरित्र में सच्चाई होती है
स्पष्ट एवम निष्कलंक पुरुष के लिए
आत्मसम्मान सबसे बड़ी कमाई होती है
समन्दर में भले ही
पानी अपार है
पर सच तो यही है कि
वो नदियों का उधार है
कब कहां कौन और कैसे बदला
ये सबका हिसाब रखता है
ये दिल है जनाब
ये भी एक दिमाग़ रखता है
कभी हवा का झोंका गुजरता वृक्षों से
कभी सागर की लहर में मौज मनाता है
अनंत अनंत रूपों में गाता है गीत
मेरा प्रभु अनेक रूपों में रोज आता है
तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
सांसो जरा आहिस्ता चलो तो बंदगी कर लूं
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है
क्षमा भाव मन में रखें हमेशा
यहाँ क़दम क़दम पर भूल होती है
मिलकर करें भक्ति सत्संग
तो दुआएं क़बूल होती है
जीत किसके लिए, हार किसके लिए,
जीवन भर ये विवाद किसके लिए,
जो भी आया है जाएगा एक दिन,
फिर ये इतना अंहकार किसके लिए।
जिस्म मुराद के लिये गया था मज़ार पर
और रूह मुरीद हो गयी
जिस्म अब भी ख़्वाहिशों मे उलझा है
और रूह की ईद हो गयी
बेहिसाब हसरतें न पालिए
जो मिला है उसे संभालिए
संतो के सितारों से भरा है भारत का आकाश
ज्योति सबकी एक मगर अनंत सितारे हैं
उन सब में ध्रुव तारा है सन्त रविदास
आओ सुमिरन करें ये परम सन्त हमारे हैं
जिसे अपने वास्तविक स्वरुप का आभास होता है
संसार का हर तीर्थ उसके पास होता है
जो जन सन्तों के वचनों को हृदय बसाए
उसके मन में दैवीय गुणों का वास होता है
परम आत्मा उसी की है जो स्वयं को मानता है
धार्मिक वह है जो मानव धर्म को मानता है
शिरोमणि सन्त रविदास के महान विचार है ये
ब्राह्मण वही होता हैं जो ब्रह्म को जानता है
बोलने की आजादी है कुछ भी कह सकते हो
लालच में आकर भावनाओं में बह सकते हो
मगर पता नहीं वक्त का पासा कब पलट जाए
इसलिए सितम उतना ही करो जो तुम सह सकते हो
हम समझते कम और समझाते ज्यादा है
इसलिए सुलझते कम और उलझते ज्यादा है
ममता तेरा कोई मोल नही
तू सृष्टि की रचनाकार है ।
बैर कराते मंदिर -मस्जिद
तू तो बस पालनहार है ।
जिनकी नीयत और इरादें
साफ होते हैं,
बहुत लोग उनके
खिलाफ होते हैं।
माटी का संसार है
खेल सके तो खेल
बाज़ी रब के हाथ है
पूरा विज्ञान फेल
ना मैं बादशाह हूं, ना मैं वज़ीर हूं
ना मैं अमीर हूं, ना मैं राईस हूं
तेरा इश्क़ है मेरी सल्तनत
औऱ मैं उस सल्तनत का फ़क़ीर हूं
बस यही दो मसले, जिंदगी भर ना हल हुए,
ना नींद पूरी हुई… ना ख्वाब मुकम्मल हुए।
ऐ शराबी तेरे मयखाने पे तू नाज़ ना कर,
मैं भी एक रिंद हूँ मस्ती में जिया करता हूँ
रिंद दोनों हैं, पर इसमें भी फर्क है नादां,
तू गिलासों से, मैं नज़रों से पिया करता हूँ
एक सांस सबके हिस्से से हर पल घट जाती है
कोई जी लेता है जिंदगी किसी की कट जाती है
माना कि ख्वाब झूठे और
ख्वाहिशें अधूरी है
मगर जिंदा रहने के लिए
गलतफहमियां भी जरूरी है
जब तक मन में खोट और दिल में पाप है
तब तक बेकार सब मंत्र और जाप है
जाते ही मिट गई श्मशान में लकीर
पास पास ही जल रहे थे राजा और फकीर
चिंता इतनी कीजिए की काम हो जाए
पर इतनी नही की जिंदगी तमाम हो जाए
छीन कर खाने वाले का कभी नहीं भरता
बांट कर खाने वाला कभी भुखा नहीं रहता
सुख दुःख तो अतिथि हैं
बारी बारी आयेंगे चले जायेंगे
यदि वो नहीं आयेंगे तो
हम अनुभव कहाँ से लायेंगे
जिन्होंने कभी खुद के साथ वफा नहीं की
लोग उनमें वफा का सिला ढूंढते हैं
दिलों की इमारतों में बंदगी का नामोनिशान नहीं
और ईटों की मस्जिदों में खुदा ढूंढते है
इस भागदौड़ की दुनिया में
एक पल का भी होश नहीं
वैसे तो जीवन सुख में है
फिर भी क्यों संतोष नहीं
चहरे पर सुकून तो बस दिखाने भर का है
वरना बेचैन तो हर शख्स जमाने भर का है
इतनी मेहरबानी मेरे ऊपर बनाए रखना
जो रास्ता सही हो उसी पर चलाए रखना
ना दुखे दिल किसी का मेरे शब्दों से
इतनी कृपा मेरे ऊपर बनाए रखना
यह दुनिया एक मेला है
कोई चला जाता है कोई आ जाता है
कोई फूलों में भी खुश नहीं रहता
कोई कांटो से भी निभा जाते हैं
नियत साफ हो तो
एक लोटा जल भी कबूल है
वरना दिखावे का तो
छप्पन भोग भी फिजूल है
ना मांझी ना रहबर ना हक में हवाएं हैं
है कश्ती भी जर्जर ये कैसा सफर है
अलग ही मजा है फकीरी का अपना
ना पाने की चिंता न खोने का डर है
जैसी नीयत है
वो वैसी कहानी रखता है
कोई परिंदों के लिए बंदूक
तो कोई परिंदों के लिए पानी रखता है
दुनिया के रैन बसेरे में
पता नहीं कितने दिन रहना है
जीत लो सबके दिलों को
बस यही जीवन का गहना है
कुछ ऐसे अमीर हैं
जो कंगालों से भी ज्यादा रीते हैं
कुछ ऐसे फ़कीर हैं
जो सोने के घट में पानी पीते हैं
मेरी नजर से ना हो दूर एक पल के लिए
तेरा वजूद है लाज़िम इस सत्संग के लिए
एक ऐसा तजुर्बा हुआ है मुझे आज की रात
बचाके धड़कने रख ली है मैंने कल के लिए
खोटे सिक्कों के कभी दाम नहीं आते
नीम के पेड़ पर कभी आम नहीं आते
जिस मंदिर कि नींव में भर दी गई है लाशें
उस मंदिर में दर्शन देने कभी राम नहीं आते
ज़िन्दगी है साहब
छोड़कर चली जाएगी
मेज़ पर होगी तस्वीर
कुर्सी खाली रह जाएगी
भरोसे पर ही टिकी है जिंदगी
नेक कामों के साथ विश्वास रखिए
ईश्वर का धन्यवाद करते हुए
मन में हमेशा पवित्र एहसास रखिये
ठोकर ना लगा मुझे पत्थर नहीं हूँ मैं,
हैरत से ना देख कोई मंज़र नहीं हूँ मैं,
तेरी नज़र में मेरी कदर कुछ भी नही,
मगर उनसे पूछ जिन्हें हासिल नही हूँ मै
निगाहें नाच करती है पलक के आशियाने से
मैं भी रूठ जाता है किसी का दिल दुखाने से
श्रीमद् भागवत कथा शायरी
सर्व वेदांत का सार है
श्रीमद्भागवत पुराण जीवन का आधार है
इस रसामृत से जो तृप्त हो गया
वह जीव भवसागर से पार है
ज्ञान है मर्यादा है साधन भक्ति है
भारत का मुकुटमणि और जीवन की शक्ति है
आओ इस सनातन महाज्ञान को श्रवण करें
श्रीमदभागवत कथा ही संसार से मुक्ति है