आदिवासी दिवस भाषण || अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस || international aadivasi Divas speech in Hindi || aadivasi Divas per bhashan

दोस्तो आदिवासी दिवस पर आपने भाषण देना हो तो आप नीचे लिखे भाषण में से तैयारी कर सकते हैं।

आदिवासी भाषण/स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों का योगदान

श्री गणेश मैं करूं राष्ट्र के वंदन से
वंदे मातरम के ज्योतिर्मय अभिनंदन से
लिए भावना भवराष्ट्र की वंदन करता हूं
सबसे पहले आप सभी का अभिनंदन करता हूं

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर सबसे पहले आदिवासी जनजाति को गौरव प्रदान करने वाले बिरसा मुंडा जैसे महान स्वतंत्रता सैनानियों को शत-शत नमन करता हूं।

आज इस प्रांगण में उपस्थित माननीय मुख्य अतिथि महोदय विशिष्ट अतिथि, युवा शक्ति, मातृशक्ति बुजुर्गों और मेरे आदिवासी भाई बहनों का अभिवादन करता हूं।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि 15 नवंबर के दिन जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। यह गौरव हमें हमारे महापुरुष भगवान बिरसा मुंडा और स्वतंत्रता सैनानियों ने दिया।

हमारे आदिवासी समाज ने केवल संस्कृति को ही नहीं संजोया बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में विशेष भूमिका निभाई।

ब्रिटिश शासन के दौरान भगवान बिरसा मुंडा आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़े। लोगों को अपनी संस्कृति और विश्वास के साथ जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया।

माना अगम-अगाध सिन्धु है
संघर्षों का पार नहीं है
किन्तु डूबना मझधारों में
साहस को स्वीकार नहीं है

इसी तरह से साहस और शौर्य का परिचय देते हुए छत्तीसगढ़ में सोनाखान के गौरव वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया। वीर नारायण सिंह 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के पहले शहीद थे।

इसी तरह 1897 को आंध्र प्रदेश में जन्मे श्री अल्लूरी सीताराम राजू ने भी अंग्रेजों के खिलाफ रंपा विद्रोह का सफल नेतृत्व किया।
स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी महिलाओं ने भी अपने शौर्य का अद्भुत परिचय दिया।

रानी गाइदिन्ल्यू भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक व्यापक हिस्सा थी।

आशा की किरण जब निकलती है
तो अंधकार को मिटा देती है
प्रचण्ड भाव से उठी एक आवाज
मुर्दा इंसान को जगा देती है

आदिवासियों की इस प्रचंड देशभक्ति के अनेक किस्से सुनाए जा सकते हैं। 1857 की क्रांति के 2 वर्ष पूर्व दो संथाली भाइयों सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने 10000 संथानों को एकजुट किया और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की। इस तरह आदिवासियों ने अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि से भगाने की शपथ ली। मुर्मू भाइयों की दो बहनें फूलो और झानो भी इस आंदोलन में शामिल थी।

मैं कहना चाहता हूं देश की सरकारों से कि जब आदिवासियों ने देश के हर संकट में देश का साथ दिया हो ,प्रकृति की रक्षा की हो, संस्कृति को बचाने का बीड़ा उठाया हो तो फिर क्यों आदिवासियों को उनके अधिकार नहीं मिल रहे।

किसी भी कौम के इतिहास से ही उसकी महानता या क्षुद्रता के दर्शन होते हैं।

आदिवासियों का इतिहास हमेशा उज्जवल है ।हम अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखें।अपने स्वतंत्रता सेनानियों महापुरुषों को हमेशा याद रखें।उनके आदर्शों को अपना कर ही हम अपने हितों और अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं।

इन्हीं शब्दों के साथ आए हुए अतिथियों का आभार प्रकट करता हूं।और सभी आदिवासी भाई बहनों का धन्यवाद करता हूं जो आप सभी यहां पर एकत्रित हुए।

जय जोहार

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अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मोटिवेशनल भाषण

मेरी मिट्टी मेरा मान है
सादगी मेरी शान है
गांव का रहने वाला हूं
सभ्यता ही मेरी पहचान है

आदिवासी दिवस पर प्रांगण में उपस्थित माननीय मुख्य अतिथि महोदय, विशिष्ट अतिथि, युवा शक्ति, मातृशक्ति बुजुर्गों और आदिवासी भाई बहनों का अभिवादन करता हूं।

किसी भी समाज का अतीत अति महत्वपूर्ण होता है। आदिवासी समाज की बात करें तो हमारा अतीत गौरवपूर्ण रहा है। पर्वतों ,नदी नालों, जंगलों की आराधना करने वाले आदिवासी लोग हमेशा प्रकृति पूजक रहे हैं। हमारे आदिवासी समाज से ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान होती है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जैसे जैसे देश ने विकास किया है,आदिवासी समाज में भी जागरूकता आई है। आज समाज धीरे-धीरे विकास के पथ पर अग्रसर है।

गांव का मुखिया और देश का यूवा होने के नाते आदिवासी समुदाय के लोगों से एक दो बातें जरूर कहूंगा कि आप शिक्षा के लिए प्रेरित हों।
आज शिक्षा जरूरी हो चुकी है।

इसलिए अपने बच्चों को आप हर हाल में शिक्षित करने का संकल्प लें।

आज भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुरमू आदिवासी समुदाय से ही है। उन्होंने यह पद अपनी शिक्षा दीक्षा से ही हासिल किया है। किसी भी समाज का कोई व्यक्ति जब शिक्षित होकर सफल होता है तो वो ।दूसरों की भी सहायता कर सकता है।

जीवन और चरित्र का गठन करते है
आओ ऐसी शिक्षा के लिए यत्न करते हैं

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने एक बात कही है “शिक्षित बनो संगठित रहो”

आज आप शिक्षित होंगे तभी अपने समाज के हितों के लिए लड़ पाएंगे। असल में अनपढ़ता और आडंबर बहुत बड़ी कमजोरी होती है। जिसे छोड़ना होगा।

शायद आप लोगों को पता ही नहीं होता कि आदिवासियों के लिए सरकार की क्या सुविधाएं हैं? कितना फंड आता है? संविधान में हमारे लिए क्या प्रावधान है?

इन बातों के प्रति हम तभी सजग होंगे जब हम शिक्षित और जागरूक होंगे।

हालांकि आदिवासी समाज धीरे-धीरे शिक्षा की आगे बढ़ रहा है। मगर हमें इस बदलाव भरे युग में तेजी से विकास करना होगा।

मैंने देखा है कि अक्सर नेता लोग आदिवासियों की गौरव गाथा सुनाकर, और केवल हमारी संस्कृति का बखान मात्र करके आदिवासी समाज का नाजायज फायदा उठाते हैं।

भारत देश में लगभग 10 करोड़ आदिवासी है। इनके उत्थान के लिए सरकार से पैसा भी आता है जन सुविधाएं भी आती हैं। मगर हमारी कमजोरियों की वजह से अधिकारी और राजनीतिक लोग हमारा पैसा हड़प जाते हैं। जिसका परिणाम यह है कि आज भी समाज मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जूझ रहे हैं।

एक बात मैं स्पष्ट रूप से कहूंगा कि अगर हम लोग आदिवासी भाई बहनों का कल्याण चाहते हैं तो हमें खुद को आगे लाना होगा। सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिए बेशक हमें संगठन बनाना पड़े या हमें एक होकर अपने हितों के लिए लड़ना पड़े।

मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है
हर पल ज़िन्दगी का इम्तिहान होता है
डरने वालों को कुछ नहीं मिलता यहाँ
लड़ने वालों के कदमो में जहान होता है

भगवान बिरसा मुंडा जैसे महापुरुषों से हम प्रेरणा लें कि हम हमेशा एक होकर रहेंगे। आदिवासियों का पौराणिक इतिहास देखा जाए तो आदिवासी एक शक्तिशाली समाज था।

आज फिर से अपनी शक्तियों को जगाने की जरूरत है । समाज को बिरसा मुंडा जैसे महापुरुषों की जरूरत है।

मुझे विश्वास है कि आपने मेरी बातों को ध्यान पूर्वक सुना है और मैं आशा करता हूं कि हम अपने समाज के प्रहरी बनेंगे।

आज आपने मुझे इस कार्यक्रम का हिस्सा बनाया इसके लिए आपका हार्दिक आभार प्रकट करता हूं। आगे भी मैं इसी तरह आपसी सहमति और सहयोग से कार्य करता रहूंगा।

इन्हीं शब्दों के साथ एक बार पुनः आप सभी का आभार जो आपने मुझे इतना सम्मान दिया। आप सभी को आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

अपने वक्तव्य के समापन पर 2 पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूं।

हर हाल में सूरज अपना है
इक रोज ये दावा कर लेंगे
हम अहले जुनू जब चलेंगे
दुनियां में उजाला कर देंगे

जय जोहार
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आदिवासी हिंदी भाषण || अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस भाषण || international aadivasi Divas speech || aadivasi Divas speech in Hindi

आदिवासियों के साथ अन्याय जोरदार भाषण

प्रकृति में भक्ति का एहसास है
हृदय में कला संस्कृति का वास है
गर्व है मुझे अपने आदिवासी जीवन पर
आदिवासी समाज का उज्ज्वल इतिहास है

सबसे पहले आप सभी को आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

मंच पर उपस्थित माननीय मुख्य अतिथि महोदय अति विशिष्ट अतिथि एवं सभी उपस्थित युवाओं ,माताओं बहनों ,बुजुर्गों और सम्मानित मंच का अभिवादन करता हूं।

15 अगस्त 1947 को भारत के दुर्भाग्य के एक युग का अंत हुआ और देश स्वयं को खोजने की ओर अग्रसर हुआ। नए अवसर खुले। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ।सबको राजनीतिक,सामाजिक समान अधिकार मिले।

मगर देश के कुछ हिस्सों को अनदेखा कर दिया गया। आदिवासी लोग सरकारी सुविधाओं और लाभ से वंचित रहे।

आज आजादी को बेशक 76 वर्ष पूरे हो चुके हैं मगर हमारे आदिवासी भाई बहनों के हालात देखे जाएं तो ऐसे लगता है आजादी अभी अधूरी है।

देश के कुछ हिस्सों की हालत
गुलामी में भी इतनी बुरी नहीं हुई
मेरे आदिवासियों को देख लगता है
हमारी आज़ादी अभी पूरी नहीं हुई

हो सकता है कुछ लोगों के मन में हो कि बस आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना ही काफी है। ये भी ठीक है कि राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास हुआ है। मगर क्या देश में आज आर्थिक समता है। वास्तव में आदिवासी लोगों के साथ आज भी समानता का व्यवहार नहीं हो रहा।

दुख का दरिया शर्म का समंदर होता है
सबसे खौफनाक भूख का मंजर होता है

जब देश में कानून व्यवस्था सुविधाएं सबको समान ना मिले तो ऐसी स्वतंत्रता वंचित के किसी काम की नहीं है।

संविधान के अनुसार लोकतंत्र में हर व्यक्ति को समान अधिकार दिए गए हैं।

मगर बाबा साहब ने एक बात कही है कि आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।

कहने को आदिवासियों को मूलनिवासी कहा जाता है। वर्षों के संघर्ष के बाद भी हमारे देश में आदिवासियों को आर्थिक और सामाजिक न्याय नहीं मिला है।

अफसरशाही और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण इन लोगों तक पूरी सुविधाएं नहीं पहुंच पाती।

जंगल जमीन का रखवाला
पर्वत पहाड़ों पर रहने वाला
तुझसे उज्ज्वल है अपनी संस्कृति
मगर तुझे किसी ने नहीं संभाला

शायद आप जानते हो कि नक्सलवाद का उदय ऐसे ही हुआ था। स्वराज्य प्राप्ति के बाद लालफीताशाही, पूंजीवाद और गरीब अमीर के भेदभाव की वजह से देश के कुछ हिस्सों में विकास नहीं हुआ। मौलिक आवश्यकताएं भी गरीब आदमी की पूरी नहीं हुई ।इससे तंग होकर इस वर्ग ने अमीरों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया और नक्सलवाद का जन्म हुआ जो आज भी देश के लिए बहुत बड़ी समस्या है।

तन की हवस मन को गुनहगार बना देती है
बाग के बाग को उजाड़ बना देती है
भूखे पेटों को ईमानदारी सिखाने वालों
भूख पेट को गद्दार बना देती है

कहीं ऐसा ना हो कि आदिवासियों के साथ भेदभाव से फिर से ऐसा कोई संघर्ष जन्म ले। जरूरी है कि आदिवासी भाई बहनों के कल्याण के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए। सबसे पहले इनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध होना चाहिए ताकि यह लोग अपने अधिकारों और हितों के प्रति जागरूक हों।

सरकार को इनके लिए विशेष रूप से ऐसे बोर्ड का गठन करना चाहिए जिसमें सरकारी अफसर इनका पैसा ना हड़प सके।

भारत के 10 करोड़ आदिवासियों की आकांक्षा और आशा को पूरा करने का हम संकल्प लें अभी आज का दिन मनाने का प्रयोजन पूर्ण सार्थक होगा।

इन्हीं शब्दों के साथ आए हुए अतिथियों और सभी सुनने वालों का आभार प्रकट करता हूं जो मेरे शब्द सुने।

जय जोहार

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