दोस्ती पर खूबसूरत कहानी और शायरी:
ग़ालिब के अपने दोस्तों के प्रति ये भाव थे । इस कहानी के माध्यम से जानो
कहते हैं कि ग़ालिब एक ऐसे शायर हुए हैं जो रूह से लिखते थे। उनकी शायरी उनके सच्चे भाव थे। और ऐसे रूहानी लोग सीधे सादे और मासूम होतें हैं।सांसारिक आडम्बर, तिकड़मबाजी से अनभिज्ञ होते हैं।
ऐसे में ही एक बार ग़ालिब को किसी ने ये कह दिया कि अगर कोई मुसलमान एक बार मक्का मदीना ना जाए वह पाक मुसलमान नहीं होता।
ग़ालिब ठहरे सीधेसादे। वो फ़िक्र में पड़ गए क्योंकि ग़ालिब के पास मक्का मदीना जाने के लिए पर्याप्त धन नहीं था। और मक्का जाने के बारे में भी सोचने लगे।
मुश्किल से साहस जुटाकर दोस्तों के आगे ये बात रखी की उसके पास पैसे नहीं है। अगर दोस्त प्रबन्ध कर दें तो इतना सुनना था कि जैसे दोस्त तैयार बैठे थे क्योंकि जिस इंसान का इरादा नेक होता है पूरी कायनात उसकी मदद को तैयार हो जाती है। और दोस्तों ने इतना पैसा इकट्ठा कर दिया कि ग़ालिब का कुछ वर्ष का खर्च निकल जाए।
ग़ालिब ये देखकर हैरान हुआ और दोस्तों के प्यार को देख बाग बाग हो गया और निर्णय लिया की उसे अब मक्का मदीना जाने की ज़रूरत नहीं है।ग़ालिब ने कहा कि जब मेरे मित्र मेरा इतना ख़्याल रखते हैं मुझसे इतनी इबादत भरी मुहब्बत करतें हैं तो मेरा मक्का तो मेरे दोस्तों में ही है।उस वक्त ग़ालिब ने ये पंक्तियां लिखी थी जो आज बोल सुनकर दिल में सच्ची दोस्ती के प्रति मुहब्बत जाग जाती है।
दोस्तों की दोस्ती से दिल घबराने लगा है
कभी था सपना वो हक़ीक़त नज़र आने लगा है
माना कोसों दूर है मदीना
पर अब तो यहीं से मक्का नज़र आने लगा है
?जय हो दोस्तो आपका प्यार बना रहे?
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