आदिवासी दिवस पर शायरी भाषण | Aadivasi Diwas

सबसे पहले हमारे प्रिय पाठकों को मेरा नमस्कार। आशा है आप Swami Ji U Tube Channel एवम हमारी वेबसाइट healerbaba.com से बेहतर public Speaking सीख रहे हैं।

मेरा प्रयास है कि आप किसी भी तरह सीखें, मंच पर बोलना जरुर सीखें। इसके लिए में किसी विशेष दिवस , जयंती पर भाषण शायरी लिखता हूं। आप देखते रहिए और अनवरत अभ्यास से सीखते रहें।

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस international aadivasi day है जो बड़े व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। भारत में लगभग 10 करोड़ आदिवासी है। इस दिवस के लिए आपके लिए आदिवासी शायरी, आदिवासी भाषण लिखे हैं।

इन आदिवासी दिवस भाषण में आप खुद भी कुछ विचार डाल सकते हैं। जिससे इसे और बेहतर तरीके से बोला जा सके।आप स्वयं जरूर प्रयास करें।

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प्रकृति की रक्षा करने वाला

धरती पर जीव अविनाशी है

शुक्र मनाता है हरपल सृष्टि का

ये भारत का आदिवासी है

आपस में हमेशा मिलकर रहना
मूल वासियों ने हमें सिखाया है
वनों, पर्वतों को बचा करके
धरती को स्वर्ग बनाया है
अगर धरती को बचाना है  
इनका जीवन अपनाना होगा
या तो हम जंगल में बस जाएं
या इनको साथ बसाना होगा
जीवन में कठिनाईयों होते हुए भी 
अपनी धुन में खुशी के गीत गाते हैं 
ये उस कौम के लोग हैं दोस्तो जो 
गुरु की तस्वीर से हुनर सीख जाते हैं

Aadivasi divas Speech Video

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आदिवासियों के बारे में शायरी शब्दावली

प्रकृति की रक्षा करने वाला 
धरती पर जीव अविनाशी है 
शुक्र मनाता है हरपल सृष्टि का
ये भारत का आदिवासी है

सबसे पहले आप सभी को विश्व आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आज के कार्यक्रम में विराजमान माननीय मुख्य अतिथि महोदय श्री………. अति विशिष्ट अतिथि,विशिष्ट अतिथि श्री………… एवं उपस्थित गणमान्य लोगों और आदिवासी समुदाय के माननीय श्रोताओं का अभिनंदन करता हूं।

सभी जानते हैं कि 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासी दिवस घोषित किया था जो 1994 से भारत वर्ष में मनाया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार यह हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है। जिसमें हमारे आदिवासियों की संस्कृति, रहन सहन, जीवनयापन को लेकर कार्यक्रम होते हैं।

आदि का अर्थ है प्राचीन यानी आदिवासी ही वास्तव में  देश का मूलनिवासी है।

आपस में हमेशा मिलकर रहना
मूल वासियों ने हमें सिखाया है
वनों, पर्वतों को बचा करके
धरती को स्वर्ग बनाया है

आदिवासी लोग आपस में मिलजुलकर रहते। अगर आज हमारे जंगलों, पहाड़ों, प्राकृतिक संपदा की रक्षा की बात आए तो हमारे ये मूलनिवासी ही प्रकृति के रक्षक है।

अगर धरती को बचाना है 

इनका जीवन अपनाना होगा

या तो हम जंगल में बस जाएं

या इनको साथ बसाना होगा

9 अगस्त आदिवासी दिवस पर हमें यह प्रेरणा लेनी होगी कि हम सभी प्रकृति की रक्षा करें। जिस तरह से आदिवासी लोग प्रकृति,पर्वतों,पहाड़ों और इस सृष्टि की पूजा करते हैं, सभी को इनके प्रकृति प्रेम को अपनाना होगा।

15 अगस्त पर भाषण और शायरी

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आज देश में लगभग 10 करोड़ के करीब ये स्वदेशी लोग हैं। जिन्हें सरकार की समुचित सुविधाएं नहीं मिल पाती। अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी का कारण इनकी अनपढ़ता भी है। इसलिए इसलिए आज हम लोग संकल्प लें कि ज्यादा से ज्यादा शिक्षित हो।

अपने बच्चों को शिक्षित करें ताकि आपको उपेक्षा और बाल मजदूरी के अभिशाप से मुक्ति मिल सके।

जिंदगी को ओर भी जिंदा बनायेगे

हम कलम से खून का रिश्ता निभाएंगे

ताज ओर मीनार किस काम के

सबसे पहले आदमी का घर बनायेगे

महाभारत काल में एकलव्य जैसे धनुर्धारी हुए।तीरंदाजी,निशाना लगाना,अन्य भी कई अनोखे हुनर हमें हमारी वंश परंपरा से आए हैं, जिसमें महान एकलव्य का नाम जुड़ता है,जिसने एक सच्चे शिष्य की मर्यादा को निभाया और गुरु द्रोण को दक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा भेंट किया।

जीवन में कठिनाईयों होते हुए भी

अपनी धुन में खुशी के गीत गाते हैं

ये उस कौम के लोग हैं दोस्तो जो

गुरु की तस्वीर से हुनर सीख जाते हैं

आज हम सभी संकल्प लें कि आदिवासियों का जीवन फुले फुले। इन्हें बेहतर से बेहतर सुविधाएं मिले। इनकी तरह हम भी सृष्टि और प्रकृति पूजा करें और धरती को बचाएं

धन्यवाद

aadivasi divas

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आदिवासियों के बारे में शायरी शब्दावली भाषण

सबके व्यवहार भिन्न भिन्न है

पर नीयत नेक होनी चाहिए

हर मकसद पूरा हो सकता है

बस सबकी भावनाएं एक होनी चाहिए

आदिवासी दिवस के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

माननीय मुख्य अतिथि एवं उपस्थित सभी श्रोताओं का हार्दिक अभिवादन करता हूं।

भारत के आदिवासियों का इतिहास स्वर्णिम रहा है और उसकी सबसे बड़ी वजह यह है की आदिवासी प्रकृति पूजक होते है। वे प्रकृति में पाये जाने वाले सभी जीव, जंतु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी की पूजा करते है। और उनका मानना होता है कि प्रकृति की हर एक वस्‍तु में जीवन होता है।

आज प्रदूषण बढ़ रहा है। हमारे प्राकृतिक संसाधन कम होते जा रहे हैं। इसका कारण है की हमें प्रकृति से प्रेम नहीं है। आदिवासी लोगों में प्रकृति के प्रति अपार श्रद्धा होती है।

पेड़ पौधों की रक्षा के लिए हमें आदिवासियों को अपना आदर्श बनाना होगा। इस बात से इंकार नहीं कर सकते क्योंकि धरती पर हमें जीवन के लिए पेड़ पौधों की, प्राकृतिक संसाधनों की जरूरत हमेशा रहती है। ये वृक्षों को देवता की तरह पूजते हैं।

अश्क कतरे हैं यूँ तो पानी के

दरिया इनसे बड़ा नहीं होता

फूल देता है,फल भी,साया भी

क्या शज़र देवता नहीं होता

ऐसा ही भाव हमारा होना चाहिए।

आज हमें इन मूल वासियों के लिए कुछ करने की जरूरत है। शिक्षा एवम जागरूकता की कमी के कारण इन लोगों को सरकार से पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पाती।

इनके भोलेपन और अनपढ़ता का फायदा उठाकर अधिकारी लोग इनकी ओर पूरा ध्यान नहीं देते। समय-समय पर यह लोग धरना हड़ताल करते हैं तो ज्यादातर इनकी मांगो पर ध्यान देने की बजाय इन पर हिंसात्मक कार्यवाही होती है।

यह बात ठीक है इन के लिए कानूनी एवम संवैधानिक प्रावधान निश्चित किए जाते है। मगर ये प्रावधान केवल बोलने,सुनने एवम चर्चा करने मात्र ही रह जाते हैं।

सरकार जो पैसा इनके लिए देती है। बीच के अफसर अधिकारी हजम कर जाते हैं। हमें हमारे देश के आदिवासियों को अपना समझ कर इनके प्रति संवेदना जगाने की जरूरत है। कहने को हम लोग विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं पर क्या हमारे अंदर इनके प्रति सम्मान और सहायता का भाव है।

इनके लिए 9 अगस्त का ये दिन तभी स्वर्णिम होगा।जब इन्हें समुचित सुविधाएं मिलेगी इन्हें भी जीने का अधिकार मिलेगा।

आसमा से उतरकर जमीन पर आ गई है

अब बात घूम फिर कर फिर वही आ गई है

इस ज़मीं को बचाना है हमीं से हमको

ये जिम्मेदारी भी देखिए हमीं पर आ गई है

यही वो लोग हैं जो इस पृथ्वी को बचाने के लिए कोई भाषण, चित्रकारी नहीं करते बल्कि अपनी श्रद्धा से पृथ्वी की इबादत करके दुनियां पर उपकार करते हैं।

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को भारत के राष्ट्रपति पद से विभूषित करना कहीं न कहीं इन स्वदेशी लोगों के लिए आशा की किरण है। इसके साथ शासन, प्रशासन एवम सफल सामाजिक संस्थाओ और युवाओं को इनके विकास के लिए बेहतर प्रयास करने होंगे।

ये हमारा कर्त्तव्य है। हम अपने कर्तव्यों का बोध करके आज के दिन आदिवासी समुदाय का सम्मान करें। प्रकृति प्रेम करें। ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं और इनके कल्याण के लिए दिल में संवेदना जगाएं।

आशा है आप इन बातों पर ध्यान देंगे एक बार पुनः आप सभी को आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

दो पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूं

जो ना अब तक हुआ कर दिखाएंगे हम

नफ़रतों को दिलों से मिटायेंगे हम

अपने हिन्दोस्तां को ख़ुदा की कसम

फिर से सोने की चिड़िया बनाएंगे हम

धन्यवाद

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कुछ लोग प्रकृति की खिलाफत करते हैं

कुल्हाड़ी से दरख़्तों पर कयामत करते हैं

ऐसा ना हो एक दिन शुद्ध हवा के लिए तरस जाएं

आओ मिलकर इस कायनात की इबादत करते हैं

आप सभी को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। कार्यक्रम में उपस्थित मुख्य अतिथि, गणमान्य लोगों, युवा नागरिकों, आदिवासी समुदाय के सभी महानुभावों का अभिवादन करता हूं।

आज आदिवासी दिवस पर खुशी जाहिर करता हूं की मैं आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखता हूं। मुझे मेरी संस्कृति सभ्यता से प्यार है।

जीवन बीता गरीबी में

हमें कोई गम नहीं

बचा पाए संस्कारों को

जो किसी दौलत से कम नहीं

बेशक हमारा जीवन गरीबी में बीता हो या बीत रहा हो पर हमारे संस्कार जिंदा है। इस धरती, पेड़ पौधों के प्रति ,पहाड़ों पर्वतों ,नदी नालों, के प्रति हमेशा हमारे पवित्र संस्कार रहे हैं।

पूरी मानव जाति को अपने जीवन के लिए आज हमारे इन संस्कारों को अपनाना होगा।

कभी हवा का झोंका गुजरता वृक्षों से

कभी सागर की लहर में मौज मनाता है

अनंत अनंत रूपों में गाता है गीत

मेरा प्रभु अनेक रूपों में रोज आता है

हम लोग प्रकृति में ही प्रभु के दर्शन करते हैं। लोग जल से पूजा करते हैं मगर हम जल को ही देवता मानते हैं। पूजा अर्चना में साधक पेड़ के पत्तों से पूजा करते हैं। हमारे लिए पेड़ ही पूजनीय है।

कहीं ना कहीं मैं कहूंगा कि हम  सैद्धांतिक जीवन के निकट हैं। मगर आज समय कहीं ना कहीं अपनों की तलाश है जो हमारी सहायता कर सकें।हमारे जीवन स्तर को उठाने के लिए प्रयास करे।

उम्र के इस दौर में हकीकत की भीड़ से

कुछ गुमशुदा सपने ढूंढ रहे हैं

आजकल हम अपनों में

कुछ अपने ढूंढ़ रहे हैं

मगर यह भी सच है कि अपने हितों के लिए लड़ना पड़ता है। हम भी इसी देश की मिट्टी में जन्मे है।हमारा इतिहास पौराणिक है। फिर भी हमें अनदेखा कर दिया गया। हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को साथ रखते हुए लड़ना होगा।

मात्र अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाने से हमारे घरों में चूल्हे नहीं जलेंगे। बहुत-बहुत से हमारे आदिवासी भाई बहन अभाव में जी रहे हैं। हमें भावनात्मक रूप से एक होने की जरूरत है।

15 अगस्त 2022 को बेशक हम स्वतंत्र भारत के 76वे वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे। मगर उस इंसान के लिए आजादी किस काम की जो अपने पेट की आग बुझाने के लिए रोटी के निवाले को तरस रहा हो।

मेरी आवाज जहां तक जाती है मैं यही कहूंगा कि शासन-प्रशासन हमारे ऊपर ध्यान दें और इसके साथ हम लोग भी संगठित होकर अपने हितों की रक्षा करें।

आशा है आप अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के शुभ अवसर पर मेरी बातों पर ध्यान देंगे। एक बार पुणे आप सभी का हार्दिक अभिवादन करता हूं

धन्यवाद

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