15 अगस्त स्पीच | 15 August Speech in Hindi

लाख गिरकर उठने की हिम्मत आई है
वीरानों से गुजरकर जन्नत पाई है
यूं ही नहीं मिली आजादी हमें
सैंकड़ों कुर्बानियां देकर यह दौलत पाई है

15 अगस्त स्पीच

सबसे पहले मैं उन वीरों को शत् शत् नमन और धन्यवाद करती हूं जिनकी कुर्बानी की बदौलत हमें आज़ादी मिली

आज हम हर तरह से स्वतंत्र हैं। 15 अगस्त 1947 के बाद जब से हमें स्वराज्य की प्राप्ति हुई तब से लेकर आज तक इतने वर्षों में हमारे भारत देश ने बहुत प्रगति की है।चाहे वो शिक्षा के क्षेत्र में हो, राजनीतिक, सामाजिक या फिर तकनीकी क्षेत्र में हो।

जो समस्याएं थी वो धीरे-धीरे समाप्त होती गई और उनमें सुधार होता गया। हालांकि हमारा भारत देश अंग्रेजों से तो आज़ाद हो गया लेकिन असल में हमें जो आज़ादी चाहिए उसके लिए अभी भी हमें देश हित में काम करने की ज़रूरत है।

अगर बात करें धर्म की, तो यह हमारी ही सोच का परिणाम है कि आज हमने इसे अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया है। धर्म के नाम पर दंगे होते हैं, अपने आप को ऊंचा दिखाने के लिए हर प्रयास किए जाते हैं।

लेकिन अगर गहराई से देखें तो क्या हम इसी सोच के साथ चल कर अपने देश के भविष्य को उज्जवल बनाने में योगदान दे सकते हैं। शायद ऐसा संभव नहीं है।

क्योंकि इसके लिए सबसे पहले हमें मानवता का धर्म निभाते हुए अपनी सोच को बदल कर अपने आप को बदलना होगा। तभी हमारा देश हर तरह से विकास की ओर तेजी से अग्रसर होगा।

सभी धर्मों को समान होने दो
मेरे देश को महान होने दो
अब मस्जिद में पढ़ी जाने दो गीता और मंदिर में कुरान होने दो

ज़रूरत है आज हमें इस भेदभाव को खत्म करके अपनी जिम्मेदारी लेकर अपने आप को बदलने की, ताकि हम अपने देश की प्रगति में हर संभव योगदान दे सकें।

युवा वर्ग जो हमारे देश का भविष्य है।जरूरत है आज उनमें ऐसी जागरूकता की जो सही गलत का अंतर समझते हुए देश हित में बिल्कुल सही फैसले ले सके और अपने दम पर ख़ुद की एक अनूठी पहचान बनाए।

आज अगर हम अपने आपकी जिम्मेदारी लेकर खुद को ईमानदार रखते हैं तो हम अपने देश की कामयाबी में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं।

यह जरूरी नहीं कि कुर्बानी ही दी जाए, बस अपने आप की जगह हम सही बने रहें।हम बदलेंगे तो माहौल बदलेगा, परिवार, पड़ोस, गांव और धीरे-धीरे यह देश बदलेगा।

एकदम से नहीं बदल सकता लेकिन अगर हम धीरे-धीरे प्रयास करें तो सब कुछ बदल सकता है और हम आतंकवाद, भ्रष्टाचार, हड़ताल और जो दंगे होते हैं उन्हें रोक सकते हैं।

ठीक है अपने हक के लिए लड़ना भी जरूरी है लेकिन जो तरीका हम अपनाते हैं वह कहीं ना कहीं सही नहीं है। समस्या और भी बढ़ जाती हैं लेकिन अगर हम एक सूझबूझ के साथ एक दूसरे को समझते हुए मिलकर चलें तो ऐसा संभव है कि हर समस्या समाधान हो जाएगी।

बस हमें अपने नज़रिये को बदलकर और अपनी समझ और ज्ञान का सही प्रयोग करते हुए अपना फ़र्ज़ निभाते हुए भारत देश को उन्नति की ओर लेकर जाएं।

खुशियां है लेकिन शहादत का मंच सजाना बाकी है
मिल गए मेरे हक मुझे पर कर्ज़ चुकाना बाकी है
शहीदों ने तो दे दी कुर्बानी वतन के लिए
मैंने क्या किया देश के लिए फ़र्ज निभाना बाकी है।

आओ आज ही से एक लक्ष्य के साथ यह संकल्प लें कि हम अपनी शक्ति का सही प्रयोग करें।

अपनी उर्जा को नेक कामों में लगाकर, मिलजुल कर काम करते हुए, सही मायने में अपने आप को और हमारे भारत देश को स्वतंत्र कराएं।


जय हिंद।
धन्यवाद।

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